मध्य प्रदेश सिवनी

बालाघाट लोकसभा क्षेत्र में पवार जाति का मतदाता ही होता है निर्णायक

  • सूर्यप्रकाश विश्वकर्मा
    सिवनी 15 अप्रैल (लोकवाणी)। जातिगत समीकरण में पंवार समाज सबसे अहम बालाघाट-सिवनी क्षेत्र में लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा का, यहां जातिगत समीकरण अहम किरदार निभाता है। क्षेत्र में पंवार समाज ओबीसी चुनावी नतीजों को बदलने या पलटने की ताकत रखता है। यहां लोकसभा चुनाव में कई प्रयोग हुए और जनता ने विभिन्न दलों को आजमाया। उनके प्रत्याशियों को सांसद बनने का मौका भी दिया। पिछले पांच लोकसभा चुनाव से इस सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है। इस संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1952 से वर्ष 2019 तक 11 व्यक्ति सांसद चुने गए। इनमें सात सांसद पंवार समाज से रहे। केवल कचरूलाल जैन, नंदकिशोर शर्मा, प्रहलाद पटेल और कंकर मुंजारे पंवार समाज से नहीं हैं। पंवार समाज को साधने के लिए भाजपा हमेशा इसी जाति के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है। भाजपा के चार तो कांग्रेस के दो सांसद पंवार समाज से रहे हैं।

गौरीशंकर बिसेन के नाना भोलाराम भी रहे है सासंद
वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 2019 तक के राजनीतिक परिदृश्य में मतदाताओं ने जनसंघ-भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के प्रत्याशियों को भी यहां से सांसद चुना। वर्ष 1962 में इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के स्व. भोलाराम पारधी सांसद चुने गए थे। भोलाराम पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन के नाना थे। इसके बाद वर्ष 1977 में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया खोब्रागढ़े से कचरूलाल हेमराज जैन सांसद बने। उस दौर में भारतीय राजनीति में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया की उपस्थिति थी और बालाघाट की जनता ने इनके उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। वर्ष 1989 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कंकर मुंजारे भी सांसद चुने गए। समय के साथ भाजपा मजबूत होती गई। एक दल भंग तो दूसरे का कम हुआ प्रभाव समय के साथ कई दलों का महत्व खत्म हो गया। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी वर्ष 1972 में भंग हो गई। रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया आज प्रभावहीन है।

पहले कांग्रेसी सासंद बने थे चिंतामन
बालाघाट लोकसभा सीट से पहली बार कांग्रेस के चिंतामन राव गौतम सांसद चुने गए थे। इस सीट पर कांग्रेस से आखिरी सांसद विश्वेश्वर भगत थे। उन्होंने वर्ष 1991 में चुनाव जीता और वर्ष 1996 तक सांसद रहे। चिंतामन राव गौतम बालाघाट लोकसभा से चार बार सांसद चुने गए। चिंतामन गौतम को पहली बार वर्ष 1977 में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के कचरूलाल जैन से हार झेलनी पड़ी थी। इसके साथ ही चिंतामन गौतम ने राजनीति से संन्यास ले लिया। इसके बाद बालाघाट लोकसभा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस को कभी बढ़त नहीं लेने दी। इस दौरान भाजपा को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत भी बढ़ा।

फिर भाजपा को मिली लगातार सफलता
बालाघाट संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी केडी देशमुख ने कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत को हराया। भाजपा को 39.65 प्रतिशत वोट मिले थे। वर्ष 2019 में हुए चुनाव में भाजपा के डॉ. ढालसिंह बिसेन को 50.74 प्रतिशत वोट मिले थे।

परिसीमन के बाद शामिल हुई सिवनी व बरघाट विधानसभा
वर्ष 2009 में परिसीमन के बाद संसदीय क्षेत्र में सिवनी और बरघाट के शामिल होने के बाद पंवार समाज का दबदबा और बढ़ गया। पंवार समाज के बाद दूसरे पायदान पर आदिवासी मतदाता, फिर लोधी, मरार और अन्य समाज के मतदाता हैं। 2009 के पूर्व सिवनी संसदीय क्षेत्र हुआ करता था, जहां से भाजपा व कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव जीतकर विकास की गाथा रची है।
प्रहलाद पटेल ने भी दर्ज करायी थी जीत
प्रदेश और केंद्र में कई मंत्रालयों का दायित्व संभालने वाले प्रहलाद सिंह पटेल के राजनीतिक जीवन में बालाघाट का खास स्थान है। बालाघाट में लोधी समाज का भी अच्छा प्रभुत्व है और प्रहलाद पटेल के इसी जाति से होने का लाभ लेने के लिए वर्ष 1999 में भाजपा ने बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र से उन्हें मैदान में उतारा। प्रहलाद सिंह पटेल ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और खुद का राजनीतिक वजन साबित भी किया।
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सांसद और मंत्री की तनातनी रही चर्चा का केंद्र
वर्ष 2014 में भाजपा से बोधसिंह भगत सांसद बने थे, तब गौरीशंकर बिसेन प्रदेश के कृषि मंत्री थे। दोनों के बीच कई बार तनातनी हुई। कई बार लोगों ने खुले मंच पर दोनों के बीच जुबानी जंग होते देखी। जून, 2017 में मलाजखंड में आयोजित भाजपा के ‘सबका साथ, सबका विकास’ कार्यक्रम में दोनों के बीच हुए विवाद ने प्रदेश स्तर पर राजनीतिक भूचाल ला दिया था। माना जाता है कि दोनों बड़े नेताओं के बीच झगड़े की जड़ वो बीज कंपनी थी, जिसकी खराब गुणवत्ता को लेकर बोधसिंह भगत ने कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन को उलझा लिया था। वर्ष 2017 में महाराष्ट्र के वर्धा जिले में इस कंपनी के बीजों के कारण कई किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी। तब बोधसिंह भगत और गौरीशंकर बिसेन के बीच बालाघाट के उत्कृष्ट विद्यालय मैदान सहित अन्य राजनीतिक मंचों पर जमकर विवाद हुआ था। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। दोनों के बीच विवाद की आग कभी शांत नहीं हुई। आखिरकार बोधसिंह भगत का वर्ष 2019 में टिकट कट गया और वर्ष 2023 में उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया।
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संसदीय क्षेत्र बालाघाट की ये रहे सासंद
वर्ष सदस्य(दल)
1971 चिन्तामन राव गौतम (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 कचरू लाल जैन (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया)
1980 नंदकिशोर शर्मा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1984 नंद किशोर शर्मा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 कंकर मुंजारे (स्वतंत्र)
1991 विश्वेश्वर भगत (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1996 विश्वेश्वर भगत (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1998 गौरीशंकर बिसेन (भारतीय जनता पार्टी)
1999 प्रह्लाद पटेल (भारतीय जनता पार्टी)
2004 गौरीशंकर बिसेन (भारतीय जनता पार्टी)
2009 केडी देशमुख (भारतीय जनता पार्टी)
2014 बोधसिंह भगत (भारतीय जनता पार्टी)
2019 ढालसिंह बिसेन (भारतीय जनता पार्टी)

 

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